कोई जहाज़ जब डूबने लगता है तो सबसे पहले वहां से चूहे भागते हैं. इसी तरह मुझे लगता है कि मैं पटना शहर से भाग गया. मैं ही वो चूहा हूँ जो अपने बूढ़े मां-बाप को छोड़कर भाग गया. बस ‘ ए मैटर ऑफ रैट्स’ हो गया.
पटना से मोहब्बत है और थोड़ा थोड़ा गिला-शिकवा भी है. शिकवा ये है कि विकास के नाम पर जो कुछ हो रहा है, उसे थोड़ा असहज महसूस करता हूं.
जैसे सब कहते हैं पटना में मॉल बन गया है. इतनी तरक्की हो गई है. पर मैने अपनी आंखों से देखा एक बार एक पिता मॉल से बच्ची को लेकर बाहर निकले. सामने से बस बहुत तेज़ आ रही थी. पिता ने बच्ची को तो बचा लिया पर खुद बस के नीचे आ गए. एक ओर ये आलीशन मॉल. मगर लोगों के चलने लायक सड़क नहीं. तो इस तरह की तरक्की से थोड़ी उलझन में हूं.
अमरीका में असमानता बहुत ज्यादा है. मुझे लगता है, अमरीका भारत का मिरर इमेज है. एकदम आईना.
वहां के अंबानियों के पास बहुत ज्यादा पैसा है और जो सबसे गरीब हैं उनके पास कुछ नहीं.
अमरीका में असमानता बहुत ज्यादा है. मुझे लगता है, अमरीका भारत का मिरर इमेज है. एकदम आईना.
वहां के अंबानियों के पास बहुत ज्यादा पैसा है और जो सबसे गरीब हैं उनके पास कुछ नहीं.
-अमिताव कुमार, अंग्रेज़ी लेखक (पटना शहर पर अपनी ताजा किताब, 'ए मैटर ऑफ रैट्स' के बारे में )
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