सन् 1935 में एक अमरीकी ईसाई मिशनरी अलक्जेंडर मॉट गांधी जी से मिलने आया। बातों-बातों में गांधी जी ने उससे कहा कि, 'भाई अगर आपको भारत में धर्मांतरण करना है तो मुझसे या मेरे सहयोगी महादेव देसाई से क्यों नहीं शुरू करते? हमें तर्क से समझाओ कि तुम्हारे चर्च और ईसाई धर्म में क्या अच्छाई है कि हम अपने पूर्वजों का धर्म छोड़कर तुम्हारे चर्च की शरण में आ जाएं। क्यों तुम इन गरीब, पिछड़े और गाय के समान भोले- भाले हरिजनों के धर्मांतरण पर अपनी ताकत लगा रहे हो?' गांधी जी ने कितने सहज भाव से यह बात कही थी। पर पश्चिम का पूरा मिशनरी प्रेस 'गाय' शब्द को ले उड़ा कि गांधी जी तो हरिजनों को जानवर समझते हैं, उन्हें 'गाय' की श्रेणी में रखते हैं। जब बहुत हो-हल्ला मचा तो गांधी जी ने अपने 'हरिजन' साप्ताहिक में लिखा, कि 'मेरी दृष्टि में गाय जानवर नहीं, अति पवित्र पूजनीय देवी है।'
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