जब सन् 1944 में मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना पश्चिमी पंजाब में मुसलमानों की संख्या अधिक होने के कारण वहाँ पाकिस्तान बनाने की संभावनायें तलाशने गये और उन्होंने लाहौर में भाषण दिया कि“पंजाब के मुसलमानो, हमें अपना अलग से देश बनाना है जहाँ हम खुद मालिक होंगे। छोटूराम हिन्दू है वह हमारा कभी भी नहीं हो सकता, वह तो नाम का भी छोटा है, कद का भी छोटा है और धर्म का भी छोटा है, उसका साथ देना हमें शोभा नहीं देता।”
इस पर चौ॰ छोटूराम को रोहतक से तुरत-फुरत जिन्ना साहब का जवाब देने के लिए लाहौर बुलाया और उन्होंने भाषण दिया -“जिन्ना अपने को मुसलमानों का नेता कहते हैं, मुस्लिमधर्मी होने का दावा करते हैं, लेकिन पाश्चात्य संस्कृति में रंगे हैं, अंग्रेजी शराब पीते हैं, सूअर का मांस खाते हैं, अपने को पढ़ा लिखा कहते हैं, लेकिन उनको तो इतना भी ज्ञान नहीं कि धर्म बदलने से खून नहीं बदलता। हम जाट हैं, हम हिन्दू-मुसलमान-सिक्ख-ईसाई सभी हैं।”
इस पर पंजाब की मुस्लिम जनता जिन्ना के ऐसे पीछे पड़ी कि जिन्ना साहब रातों-रात लाहौर छोड़ गये और जब तक चौधरी साहब जीवित रहे (9 जनवरी 1945 तक), कभी लौटकर पंजाब व लाहौर नहीं आये। (इसी प्रकार सन् 1944 में काश्मीर में शेख अब्दुल्ला ने जिन्ना साहब को सोपुर कस्बे में जूतों की माला डलवा दी थी जिसके बाद जिन्ना साहब कभी भी अपने जीते जी कश्मीर नहीं आये और बम्बई में जाकर बयान दिया कि कश्मीर तो एक दिन सेब की तरह टूटकर उनकी गोद में गिर जायेगा। अब्दुल्ला खानदान हमेशा ही पाकिस्तान विरोधी रहा है।)
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