लेखन का माध्यम-हिन्दीदेखिए मुझे नहीं लगता कि मैंने समझ-बूझकर हिन्दी में लिखना तय किया । मेरे लिए उस भाषा में लिखना ही सहज था जिसमें मैं अपने परिवार वालों से बात करता था और फिर मेरी परवरिश भी इस तरह से हुई थी कि तमाम महत्वपूर्ण प्रभाव, मेरा धर्म और वे महत्वपूर्ण उत्सव जिनमें मैं भाग लेता था, सभी की जड़ें उस भाषा के परिवेश में गहरी गड़ी थीं जिसने मेरे भावनात्मक संसार को प्रभावित किया । इसलिए संसार को देखने के इन दो तरीकों से मुझे कोई विरोधाभास नहीं दिखा-एक तो उस अंग्रेजी के माध्यम से जिसमें मेरी शिक्षा-दीक्षा हुई और दूसरा उस हिन्दी के माध्यम से जिसमें अपनी गहन भावनाओं को व्यक्त करने का भारी दबाव मेरे अन्दर मौजूद था। तो चुनाव करने जैसी बात नहीं थी ।
निर्मल वर्मा (संसार में निर्मल वर्मा संपादक गगन गिल)
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