1950 के दशक में पहले प्रेस आयोग ने अपनी सिफ़ारिश में लिखा था, "अख़बारों का आचरण अब न तो मिशन और न ही प्रोफेशन जैसा रह गया है, यह पूरी तरह उद्योग में तब्दील हो चुका है। इसका मालिकाना हक़ अब उन लोगों के हाथों में आ गया है जिन्हें पत्रकारिता का कोई अनुभव नहीं है, यहां तक कि कोई पृष्ठभूमि भी नहीं है। इसलिए उनका आग्रह अब किसी भी तरह की बौद्धिक चीज़ों में नहीं है, बल्कि वो ज़्यादा-से-ज़्यादा मुनाफ़ा बटोरना चाहते हैं।"
(अध्याय-12, पेज 230)
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