Wednesday, August 28, 2013

Russia: Sri Krishna


मेरे देश में भी है ‘बांसुरी वाला’ जादूगर
हमारे यहां दुर्ग की बिलासपुर से जितनी दूरी है, शायद उससे भी छोटा देश है। उतनी ओसेशिया अलानिया गणराज्य। काला सागर और कैस्पियन सागर के बीच रशिया से लगा हुआ यह देश क्षेत्रफल के लिहाज से भले ही छोटा है, लेकिन हजारों सालों की माननीय सभ्यता का इतिहास अपने में समेटे हुए है। यही वजह है कि बीएसपी ब्लास्ट फर्नेस में रशिनयन प्रतिनिधि अलानिया मूल के कजबेक अगयेव से मेरी बात आज से भारत-रूस संबंधों पर कम और उनके व हमारे देश के पौराणिक मान्यताओं और उसमें सभ्यता को लेकर ज्यादा हुई। वैसे कजबेक से मुलाकात कुछ-कुछ टेढ़ी खीर की तरह थी। दरअसल करीब 10 दिनों से कजबेग बीएसएनएल की ‘भूल’ से शिकार थे। बिल भुगतान के बावजूद ‘नो पेमेंट’ के आधार पर उनका टेलिफोन काट दिया गया था। जब बीएसएनएल ने अपनी यह ‘भूल’ सुधारी तब कही मेरा कजबेक से संपर्क हुआ। इसके बाद आज जब मैं उनके घर पहुंचा तो वे भारतीय दार्शनिक योगानंद की पुस्तक पढ़ रहे थे। उत्सुकता वश मैंने कह दिया लगता है आपकी भारतीय दर्शन में गहरी रूचि है। वह बोल न सिर्फ भारतीय दर्शन बल्कि विभिन्न स्थलों पर मानवीय सभ्यताओं का उद्ïभव, विकास व उनके सभ्यता का अध्ययन करना मुझे पसंद है। इससे पहले की मैं कुछ पूछता वह खुद ही कहने लगे। अगर आप मुझे रूसी मूल का समझ रहे तो आप गलत सोच रहे है। मैं रूस से लगे देश अलानिया गणतंत्र का हूं। काकेशस पर्वत श्रृखंला से घिरे अलानिया की राजधारी बलादीकाफकास में मेरा घर है। आर्य मूल की हमारी ‘ईरान’ सभ्यता का 25000 वर्ष पुराना इतिहास मिलता है। करीब एक हजार वर्ष से हमारे लोग आर्थोडॉक्स ग्रीक चर्च के ईसाई मतावलंबी है। चूंकि कजबेक इस पर विस्तार से बोलना चाह रहे थे और मेरी जिज्ञासा भी थी, लिहाजा मैंने टोका नहीं। वह कहने लगे पूरी दुनिया घुमते रहने के बावजूद बहुत सी ऐसी वजहें है, जिनके आधार पर मुझे हिन्दुस्तानी सभ्यता व संस्कृति से प्रेम है। उन्होंने बताया वैसे तो अब हम सभी रशियन बोलते है। लेकिन, हमारी मूल भाषा ‘ओसेशियन’ है। जिसमेे करीब 150 शब्द संस्कृत के है। मैं चौक गया तो उन्होंने बताया हमारे यहां एक से दस तक गिनती का उच्चारण यू, दो, र्ïथ, चच्यार, फांज, श्आज, आफ्द, आप्ट, नौ और दस। हम ‘आदमी’ को ‘आदम’ कहते है। हमारे पूर्वज अग्नि के उपासक थे। आज भी हमारे यहां जल, वायु और अग्नि को पवित्र माना जाता है। किसी भी त्यौहार या खास अवसर पर हम तीन तह वाली तीन अलग-अलग पाई (गोल बे्रड की तरह पकवान) बनाते है। जिनमें पहली जल, अग्नि व वायु को, दूसरी पिता, माता व संतान को तथा तीसरी भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्य काल को समर्पित करते है। कजबेक ने एक और चौकाने वाला तथ्य एक प्रतिमा की तस्वीर दिखा कर बताया। उन्होंने बताया कि कृति ‘वल्शेब्नया फ्लेता अत्समा$जा’ यानि ‘अत्समा$जा की जादूई बांसरी’ हजारों साल पहले पत्थर व उकेरी गई थी। हमारे यहां मानते है कि आत्समा$जा की बांसुरी में इतना जादू था कि जंगल के जानवर भी खींचे चले आते थे। पत्थर पर बांसुरी बजाते अत्समा$जा के चारों तरफ इसी आधार पर भालू, सांप, भैंसा व अन्य जानवर चित्रित किये गये है। कजबेक की बात सुनकर मेरे मुंह से निकल गया हमारे यहां तो श्रीकृष्ण...? मेरी बात पूरी ही नहीं हुई थी कजबेक ने सहमति से सिर हिला दिया। वह बोले हम लोग एक हजार साल पहले ही ईसाई हो गये लेकिन कुछ परंपराये जड़ों में आज भी मौजूद है।

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