Sunday, August 25, 2013

Jatt and Delhi



अंग्रेजों ने सबसे पहले सन् 1903 में गाँवों का सर्वे करके ‘लाल डोरा’ कायम किया फिर इसके बाद उन्होंने सन् 1911 में दिल्ली जिले का सर्वे करवाया तथा वहाँ अपने भवन, कार्यालय तथा उच्च अधिकारियों के लिए निवास के हिसाब से नई दिल्ली को बसाया।
नई दिल्ली को बसाने के लिए अंग्रेजों ने दिल्ली में जाटों के 13 गाँवों को उजाड़ दिया।
सन् 1912 में, मालचा खाप समूह के लोगों को दिल्ली से दीवाली की रात को निकाला गया।आज भी इस खाप के चार गांव सोनीपत जिले, चार गांव कुरुक्षेत्र, चार गांव उत्तर प्रदेश तथा एक गांव दिल्ली के कादरपुर गांव के पास बसे हुए हैं।
इस अधिनियम के सहारे अंग्रेजों ने, वह सभी किया जो एक विदेशी शासक करता है, सन् 1894 में दिल्ली में गावों का अधिग्रहण किया। जबकि इस प्रकार से गाँवों को उजाड़ा जाना किसी भी अधिनियम (सन् 1858, 1861, 1892, 1909, 1919 तथा 1935) के तहत अनुचित था पर क्योंकि हिंदुस्तानी गुलाम थे लिहाजा अंग्रेजों की यह दादागिरी चल गई। आज तक किसी सरकार, इतिहासकार या किसी पत्रकार की इस बात पर नज़र नहीं गई और न ही किसी ने इसकी खोज खबर ली कि राष्ट्रपति भवन, रायसीना गाँव की चरागाह में बना है और जहा संसद भवन और इंडिया गेट है, वहाँ कभी खेतों में जौ, चना और बाजरा बोया जाता था।
आज इसी मालचा खाप के लोग अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं और मालचा गांव के सरपंच सतीश ठाकरान व गांववालों ने न्याय पाने में नाकाम रहने पर विरोध स्वरुप अपने सिर तक मुण्डवाए। इसी तरह अंग्रेजो की नाइंसाफी का दिल्ली से जुड़ा एक और दुःख भरा उदाहरण।
सन् 1857 में आज़ादी की पहली लड़ाई में अंग्रेजों के खिलाफ झंडा उठाने वाले दिल्ली के बाकरगढ़ गांव के जाट रणबांकुरों को अंग्रेजो ने लड़ाई में जीतने के बाद जाटों को गांव से बेदखल करते हुए सजा के तौर पर उनकी 5388 बीघा जमीन दूसरे गांवों को बांट दी थी।

 Photo: Shahpur Jat, New Delhi

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