क्या इससे अधिक कोई आत्मघाती दृष्टि हो सकती थी कि स्वतंत्रता मिलने के वर्षों बाद भारत की कम्युनिस्ट पार्टी एकमात्र ऐसी संस्था थी जो देश की आजादी को ”झूठी” और गांधी और नेहरू जैसे राष्ट्रीय नेताओं को ‘साम्राज्यवादी साबित करने मे एड़ी चोटी का पसीना एक करती रही! मोहित सेन बहुत पीड़ा से इस बात पर आश्चर्य प्रकट करते हैं, कि पार्टी स्वयं अपने देश के सत्तारूढ़ वर्ग के चरित्र के बारे में बरसों तक कोई स्पष्ट धारणा नहीं बना सकी थी।
-निर्मल वर्मा
(मोहित सेन की आत्मकथा पुस्तक ‘एक भारतीय कम्युनिस्ट की जीवनी: एक राह, एक यात्री’ की समीक्षा में )
स्रोत: http://mediamarch.blogspot.in/2013/07/blog-post_916.html
No comments:
Post a Comment