विद्यालय और विश्वविद्यालय गम्भीर साहित्य के पाठकों को तैयार करते हैं । लेकिन आज ये संस्थान ऐसे व्याख्याताओं, प्रोफेसरों द्वारा संचालित हैं, जो पश्चगामी और साहित्य की संवेदना से विहीन हैं । ऐसे शिक्षकों से विद्यार्थियों को गम्भीर साहित्य से परिचित करवाने की अपेक्षा कैसे की जा सकती है ? हिन्दी में कई महान एवं अच्छे लेखक हैं लेकिन उनके पास अपने गम्भीर गद्य तथा पद्यों का समझने के लिए पर्याप्त तथा संवेदनशील पाठकों की कमी है । पुस्तकों का अधिक मूल्य, वितरण, सदस्यों की कमी, पुस्तकालय, सुविधाओं का अभाव भी कुछ कारण है ।
-निर्मल वर्मा, हिन्दी साहित्य में साहित्य के पाठकों की संख्या में कमी पर(संसार में निर्मल वर्मा संपादक गगन गिल)
No comments:
Post a Comment