चीनी चुनौती के भारतीय हवाई जवाब ने किया सबको लाजवाब
भारतीय वायुसेना ने पहली बार लद्दाख के पांच हज़ार पैंसठ मीटर की ऊंचाई वाले दौलत बेग़ ओल्डी वायु पट्टी (एयरबेस) पर सी-130जे सुपर हरक्यूलिस विमान 'गजराज' को उतारा। गाज़ियाबाद से उड़ान भरने वाला वायुसेना का दुनिया के सबसे बड़ा फौजी मालवाहक विमान क़रीब सात बज़े दुनिया के सबसे ऊंचे रनवे यानि लद्दाख में दौलत बेग़ ओल्डी वायु पट्टी पर उतरा। पहली बार गजराज की वायु पट्टी पर उतरने की तस्वीरें और वीडियो मीडिया के लिए जारी किए गए।
16,614 फीट की ऊंचाई पर स्थित दौलत बेग ओल्डी इलाके में भारतीय वायुसेना के सबसे बड़े विमान हरक्यूलिस उतारना विश्व रिकार्ड के समान है। उल्लेखनीय है कि भारत ने पहली बार चीनी सीमा के पास हरक्यूलिस विमान को उतारा है। सामरिक दृष्टि से भारत के लिए यह अहम सफलता है क्योंकि दौलत बेग पट्टी की ऊंचाई काफी ज्यादा है।
करीब 43 साल पहले भारत ने 1962 की चीन की लड़ाई और 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के समय यहां पर अपने विमान उतारे थे। उसके बाद बंद कर दी गई वायु पट्टी के भारत के इस्तेमाल पर चीन को हमेशा ऐतराज़ रहा है। भारतीय वायुसेना ने 2008 में AN-32 विमान उतारकर इसे फिर से चालू किया था।
यह चीन से लगने वाली वायु पट्टी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के क़रीब है।
इस विमान की खासियत है कि इसे उतरने के लिए अधिक रनवे की जरूरत नहीं होती और यह खराब मौसम में उड़ान भरने के साथ उतर सकता है। ऐसे पहाड़ी इलाके में फौजी मालवाहक विमान का उतरना काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे वायुसेना के सैनिक टकराव की स्थिति में थलसेना की मदद के लिए एयरब्रिज बनाने की क्षमता सिद्ध हो गयी है ।
गौरतलब है कि चीन ने पिछले दिनों इसी इलाके में कई बार सीमा का उल्लंघन करने के कारण दोनों देशों के बीच तल्खी बढ़ गई थी. इस साल 15 अप्रैल को चीनी सेना के करीब 50 वाहन लैस होकर डीबीओ सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार भारतीय सीमा के 19 किलोमीटर अंदर तक घुस आई थी और पांच टेंट गाड़ दिए थे। चीन ने हाल ही में देपसांग घाटी में घुसपैठ की थी जिसके बाद से सीमा पर तनाव का माहौल बन गया था।
चीनी घुसपैठ की इन घटनाओं के बाद से भारत ने सीमा पर विशेष सतर्कता बढ़ा दी है।
इस कदम से भारत ने चीन को स्पष्ट कर दिया है वह किसी भी तरह के चीनी दुस्साहस का करारा जवाब दे सकता है। गौरतलब है कि 1962 में चीन के हमले के समय भारत ने अपनी वायुसेना का इस्तेमाल नहीं किया था, जिसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की कड़ी आलोचना भी हुई।
इस कदम से भारत ने चीन को स्पष्ट कर दिया है वह किसी भी तरह के चीनी दुस्साहस का करारा जवाब दे सकता है। गौरतलब है कि 1962 में चीन के हमले के समय भारत ने अपनी वायुसेना का इस्तेमाल नहीं किया था, जिसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की कड़ी आलोचना भी हुई।
भारतीय वायु सेना ने अपनी विशेष अभियानों की क्षमता में इजाफा करने के लिए 2011 में अमेरिका निर्मित सी-130जे सुपर हरक्यूलिस विमान को अपने परिवहन बेड़े में शामिल किया था। भारत ने वर्ष 2008 में अमेरिका से 950 मिलियन डॉलर की कीमत वाले ऐसे छह विमानों की आपूर्ति करने का आदेश दिया था।अमेरिकी विमान निर्माता कंपनी लाकहीड मार्टिन ने भारत के लिए सी-130-जे सुपर हरक्यूलिस विमान बनाए है । इस श्रेणी के छह विमानों को पहले ही राजधानी दिल्ली के निकट हिंडन वायु ठिकाने पर तैनात किया जा चुका है और इनकी जिम्मेदारी भारतीय वायु सेना के नव गठित 77 स्क्वाड्रन पर है ।
अब तक का सबसे आधुनिक विमान कहा जाने वाला यह विमान इंफ्रारेड डिटेक्शन सेट [आईडीएस] से लैस होने के चलते कम ऊंचाई पर उड़ने के साथ अंधेरे में भी नीचे उतर सकता है, हवा से सामान गिरा सकता है । प्रतिकूल वातावरण में उड़ान भरने के दौरान भी सुरक्षित रहने के लिए इसमें स्वसुरक्षा तंत्र लगाया गया है। लंबे समय तक अभियानों को अंजाम देने की क्षमता हासिल करने के लिए इसमें उड़ान के दौरान ही ईधन भरने की क्षमता के लिए भी उपकरण हैं। गौरतलब है कि भारत ने ऐसे छह विमानों का आर्डर दिया था। भारतीय वायु सेना को दिए गए सी-130-जे सुपर हरक्यूलिस अमेरिकी वायु सेना के पास मौजूद सी-130-जे का ही दूसरा प्रकार हैं। भारत सी-130-जे का बेड़ा रखने वाले अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा, डेनमार्क, इटली, नार्वे और ब्रिटेन के बाद आठवा देश है । इन विमानों में से तीन ने इस बार गणतंत्र दिवस पर आसमान में उड़ान भी भरी थी ।
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